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Alok Vishwakarma

Others

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Alok Vishwakarma

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युद्धभूमि

युद्धभूमि

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कभी सोचा कि उड़ चलूं ,दूर आसमां से

और लांघ दूं, उस अहंकारी क्षितिज के बादलों को

और करूं सिद्ध अपना पुरुषार्थ

ताकी हो संभव कर लेना नजरें मिला कर बात,

 जिस जिस ने हो कभी किया आघात..........


बस इस दुनिया को कुछ कर के दिखाना है

तानों से पीछा छुड़ाना है,

घर के लिए पैसे कमाना है,

पिता को उनके काम से छुटकारा दिलाना है।


मां के हाथों में कमाई देनी है,

छोटे भाई को आशाएं देनी है,

बहना के हर नखरे उठाने है,

सपनों के महल सजाने है।।


इतना बोझ काफी है किसी के पुरुषार्थ झुकाने को,

उसे नीचा दिखाने को , संयम बांध ढहाने को

और कहने को उससे की " होगा तुझसे",

लौट जा बस्ती अपनी , और कर वही भेडचाल,


"इस दुनिया से लड़ना तेरे बस का नही"

जीवन की रेखा में तुम वैसे भी पीछे हो,

स्तर से नीचे हो , कड़ी कमजोर भी है 

आधुनिक मुद्रा की और नही कहीं पहुंच तुम्हारी ।।


मुसीबतें है इतनी सारी, 

लगी है लाइलाज बीमारी,

छोड़ दो , अब रहने भी दो

इस दुनिया से कितना ही लड़ोगे!!!!


जीवन एक युद्धभूमि है,

सूर्योदय शंखनाद है, रात्रि प्रचंड आलाप है,

अब लड़ूं मैं बनूं योद्धा या निहारूं केवल          

दर्शकदीर्घा ,  विकल्प है.... 

 पर लडूंगा , डटा रहूंगा ,युद्ध से पीछे न हटूंगा।

   

 न जाने आज ,कल, परसों कब तक की ये लड़ाई है

 जीवन हर रोज एक नई कठिनाई है

 और कंधों पे सपनों का बोझ 

 खुद से होता द्वंद्व हर रोज


कहता है मन की , हो चलो मुक्त 

और मान लो दुनिया की बात,,

पर,क्या हो जब आपने भी कुछ ठानी हो,

ज़िद,जुनून और मेहनत से लिखी कहानी हो,

और जीत लिया हो अपने मन को..... 

फिर क्या बात हो.... क्या कहानी हो।।।



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