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V. Aaradhyaa

Tragedy

4.5  

V. Aaradhyaa

Tragedy

इंसान बदल रहा है.

इंसान बदल रहा है.

2 mins
4


आंखें सिसक रही थी

दिल बोल रहा था,

जरा ठहर जा ए दिल 

पगडंडी मोड़ आ रहा है।।


किसी का कोई नहीं

इंसान मुखौटा बदल रहा,

पानी की तरह एक डंड से 

दूर दूर छिटक रहा है।।


किसी में सहनशक्ति नहीं

ज़ब ये दिल यूँ धड़क रहा है,

दुनिया को जरा देखो तो 

घर, घर से लड़ रहा है।।


नींबू की तरह एक दूसरे को 

एक दूसरा निचोड़ रहा है 

सियासत की तरह अब 

अपना भी रंग बदल रहा है।।


जो बस में आ जाए

उसका ठीक-ठाक चल रहा है

जो बस में ना आए

उसे जबरदस्ती रगड़ रहा है।।


कल बल छल ही तो 

आज हर जगह चल रहा है,

राजनीति का तो छोड़ो

इंसान रोज़ रंग बदल रहा है।।


अपनों पर बहुत कम

परायों पर ज्यादा भरोसा कर रहा है,

यही विश्वास घात का कारण 

आज सबसे ज्यादा बढ़ रहा है।।


वहम इंसान को हद से ज्यादा

दुर्बल किये जा रहा है,

इसी कारण इंसान आज 

सफलता की सीढ़ी नहीं चढ़ रहा है।।


करतल ध्वनि पर व्यर्थ नाच

अपने आप को करा रहा है,

निज स्वार्थ के इशारे पर इंसान 

कहीं ना कहीं खुद से भाग रहा है।।


एक इंसान दूजे इंसान का 

हरदम फायदा उठा रहा है,

जहाँ देखो , हर एक जगह पर 

आज इंसान छले जा रहा है।।


सबके पास होते हुए भी सब कुछ 

एकदम बेगाना सा लग रहा है ,

घोर कलयुग में आ चुके हैं हम लोग

ऐसा आनेवाला समय बता रहा है।।


हर कोई किसी के आगे बढ़ने से 

ईर्ष्या से धू-धू होकर जल रहा है,

लगता है, यह सारा संसार 

घोर संकट की ओर बढ़ रहा है।।


कोई सत्य और धर्म की लड़ाई लड़ रहा है 

तो कोई इसका भरपूर आनंद ले रहा है ,

दुराचार सदाचार को पीछे क़र रहा है 

इसी गोलायमान के कारण ही जग चल रहा है।।


यह पाबंद समय का

कैसा बदल रहा है

सत्य को झूठ

और झूठ को सत्य बोल रहा है।।


रोज रोज थोड़ा-थोड़ा 

किसी को कोई तोड़ रहा है

जोड़ने वाले हैं नहीं 

उजाड़ने वाले का शहर बस रहा है।।


अपने आप को चमकाने के लिए दूसरे को कुएं में धकेल रहा है

यही खेल चारों तरफ

बड़े अच्छे से खेल रहा है।।


यह सब देखकर

पर्वत पिघल रहा है

लेकिन कर भी क्या सकता 

नियति कहकर सबर कर रहा है।।



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