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Ram Chandar Azad

Tragedy

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Ram Chandar Azad

Tragedy

फिर भी मैं पराई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ

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पुरुष जहाँ से आया है

मैं भी वहीं से आई हूँ

और सृष्टि के संचालन में,

संग संग साथ निभाई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ


वही हैं माता पिता वही हैं,

रिश्ते खूब निभाई हूँ

किसी की पत्नी, बेटी हूँ,

तो किसी की मैं भौजाई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ


ब्याह हुआ तो सब कुछ छूटा,

मगर नहीं दिल किसी से रूठा

पत्नी बन पति संग जब आई,

कहते पति की परछाईं हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ


सास-ससुर को मात-पिता सम,

सेवा करती सह लेती गम

जीवन नौका जब लहराती,

मिलकर पार लगाई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ


सीता बनकर संग राम के,

मैं वनवास गई संग चलके

अग्नि-परीक्षा भी मैंने दी,

तब भी गई ठुकराई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ


साक्षी है इतिहास हमारा,

मौत को भी मैंने ललकारा

सावित्री बन सत्यवान के,

मैं ही प्राण बचाई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ


पति पर जब आपत्ति आ गई

बिकने को तैयार हो गई

दहन वास्ते निज सुत शव के,

साड़ी दे कर्ज़ चुकाई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ


पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी,

संविधान ने लिख दी सारी

फिर भी छोड़ चली जाती मैं,

लालच मन न बसाई हूँ

फिर भी मैं पराई हूँ।


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