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SHUBHAM KUMAR

Tragedy

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SHUBHAM KUMAR

Tragedy

आधुनिक दोस्ती

आधुनिक दोस्ती

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जख़्म वैसे ही ना भरे थे दिल के,

उस पर एक और गहरा वार कर गयी।

जो मिल गया उसे एक नया हमसफ़र,

हमारी दोस्ती को दरकिनार कर गयी।


अरे वो क्या जाने दोस्ती का मतलब,

जो पलभर में मतलबी हो गयी ।

हमने जो वक्त गुजारे थे साथ में,

उसे मझधार में छोड़, दोस्ती तोड़ गयी।


अरे कोई नही ! अब जा तू बस खुश रह,

शायद मुझसे ही कुछ भूल हो गयी।

भूल जाऊँगा उस दोस्ती को

एक सपना समझ कर।


वैसे भी अब भुलना-भुलाना

तो एक आदत सी हो गयी।


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