रूठने -मनाने
रूठने -मनाने
रूठने -मनाने
का सिलसिला
अब बोलो तो
कहाँ रह गया है ?
मित्र तो हम
लाख बना लेते हैं,
पर एहसास मानो
मिट गया है !
हम कभी जब
रूठ जाते थे,
किन्हीं के बातों
को सुनकर !
आँखें सजल जब
हो जाती थीं,
सांत्वना कोई
देता पास आकर !
अब कहने को
तो दोस्त बनके,
विशाल क्षितिजों
पे छा गया है !
मित्र तो हम
लाख बना लेते हैं,
पर एहसास
मानो मिट गया है !
रूठने -मनाने
का सिलसिला,
अब बोलो तो
कहाँ रह गया है ?
मित्र तो हम
लाख बना लेते हैं,
पर एहसास
मानो मिट गया है !
इस दौर में
हम सबसे आगे,
कौन कितना है
बनाती मित्रता ?
हम ध्यान तो
कभी देते नहीं हैं,
ना ढूंढते इनमें
मीठी आद्रता !
सम्मान, स्नेह
यदि भूल जाएँ,
तो कहो फिर
क्या रह गया है ?
मित्र तो हम
लाख बना लेते हैं ,
पर एहसास
मानो मिट गया है !
रूठने -मनाने
का सिलसिला,
अब बोलो तो
कहाँ रह गया है ?
मित्र तो हम
लाख बना लेते हैं,
पर एहसास
मानो मिट गया है।
