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Namrata Srivastava

Tragedy

3  

Namrata Srivastava

Tragedy

धूप में पहली बारिश

धूप में पहली बारिश

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आज धूप में पहली बारिश,

कतरनों पर कुछ बातें काढ़ी थीं

तुमने पढ़ा ही नहीं सब गीली हो गईं।

धूप से कोई ख़ता हो गई

सूरज ने तासीर कम कर दी,

मौसम को आग की पनाह चाहिए।

माज़ी की बूंद दरिया हुई

नींद से जागी उमर को पकड़े

बाढ़ बनकर किताबों में रिस रही है।

मायूसियों को तालाबंदी

निगाहों में स्याह चमक धरकर

उदासियाँ तो लम्बे हड़ताल पर हैं।

चाहे दामन हो सुनसान

कैदवाले की आज़ादी के वास्ते

कैदखाने की बेचारगी पर कौन रोए।



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