STORYMIRROR

Namrata Srivastava

Tragedy

4  

Namrata Srivastava

Tragedy

शीतल क्षार

शीतल क्षार

1 min
198

इक्कीसवीं सदी का बीसवाँ साल

एक बीमार आदमी निकला

रत्ती-रत्ती कोना-कोना

आशंका में घर-बिछौना

जान के पड़े है लाले

एक नर पिशाच अति सूक्ष्म विषाणु

अदृश्य अंगारों का लावा बनकर

श्वाश में घुलकर घात कर रहा।

एक रिसर्च कहता है कि

लावे की दहक पर भारी पड़ता है

ठंडे बरफ का शीतल क्षार

ये सारे दुनिया भर के बैद, सिपाही

निर्मल कर्मी

बरफ के शीतल क्षार ही हैं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy