STORYMIRROR

Namrata Srivastava

Abstract

4  

Namrata Srivastava

Abstract

सड़कें कब्र हैं

सड़कें कब्र हैं

1 min
407

ये सड़कें गवाह हैं,

उन बेहिसाब कत्लों की

जो आए दिन क्या 

बल्कि हर रोज 

हादसों के बाद 

सड़क की मौत मरे 

जानवरों इंसानों पंछियों 

सापों और तितलियों को 

खतरनाक लाशों में  

तब्दील होते देखती हैं। 

उन लाशों के एक आध-लीटर लहू 

या सेर दो सेर मांस 

बिला सुपुर्द-ए-ख़ाक के 

सुपुर्द-ए-सड़क होते हैं। 

ये सड़के कब्र हैं 

जहाँ अनगिनत लाशें 

इन सड़कों में खप जाती हैं 

और सड़कों की सूरत 

अख्तियार किए इन कब्रों से

हम सब हर रोज निकलते हैं 

अपने नाक-आँख बन्द कर

रोज चलते हैं; 

अपनी उन सभी मंजिलों की तरफ 

अपनी तमाम कोशिशों की तरफ

अपनी तमाम खुशियों की तरफ

अपनी तमाम अजीयतों की तरफ 

हमारे उम्मीदों और ख्वाबों के 

कंदील रौशन होते हैं 

इन्हीं कब्रों से होकर।

तो 

इन्हीं सड़कों के कब्रों से होकर 

हमारे मंदिरों-मस्जिदों की राह

तय होती है इन्हीं कब्रों से होकर 

इंसानियत इल्म की छलांग लगाती है 

इन्हीं कब्रों से होकर

अखराजातों के वायस बनते हैं 

इन्हीं कब्रों से होकर हम मुकम्मल होते हैं।

या खुदाया 

तूने हमारी तकरीरों में 

कब्र क्यों लिख दिया ?

या फिर ऐसा कर 

इन कब्रों को नज़र बंद कर दे।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract