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Namrata Srivastava

Abstract

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Namrata Srivastava

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मेल

मेल

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मैं अपनी गुलाब सी गंध को

वन-करेले में आरोपित कर

दुर्गन्धित कर नही सकती।

मेरे रोमावलियों में 

सिहरन की वल्लरियाँ उमगती हैं

जिन्हें मताने वाले भी तुम हो

और सेराने वाले भी तुम ही हो

संकरी सुरंगों की सीलन को

कैसे पचाये वो 

जिसने मखमली फूलों की 

सोन्ध खींची है

किसी खाली ठूँठ की कोटर सिरी मैं

जिसे चिरई-चुरङ्ग से 

आबाद किया तुमने

मैं इसे साँपों का 

कौर कैसे बनने दूँ ?

मेरे अंगों से 

दुनिया भर के रंग निकलते है

खाली वसुधा ही समझी है

इन रंगों का मोल

वरन व्योम ने तो सर का 

मैल बनाया है

वसुधा के कानन के प्रहरी हो सखे!

मैंने तुमसे हल्दी औ' चून का 

मेल रचाया है।


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