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Namrata Srivastava

Inspirational

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Namrata Srivastava

Inspirational

माँ

माँ

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मता-ए-जान के तलबगार इस जहाँ में हैं तमाम

मुझे आज भी तलब माँ के गोदी की लगती है।


ये दौर है इंकलाब-ए-स्वाद का मगर,

मुझे आज भी महक माँ के पुए की लगती है।


ये हौसला कभी विरले दिखाते हैं

सरेआम मेरी ख़ताओं को माँ ने सम्हाला है।


छुपा लेती है आंचल में उतारती है मेरी नज़र

मेरे मसलों का क्या खूब माँ ने हल निकाला है।


कहे कोई बेशक्ल या कहे कोई बेनूर मुझको

बड़ी तबियत से हर बार मुझे माँ ने निहारा है।


फ़ख्र करना खुद पर किसी चुनौती से कम नही

अजीम तर्बियत से मुझे माँ ने सँवारा है।


ये तर्जुमा क्या ख़ाक काग़ज़ों में पाओगे

गृहस्थी में गणित ताउम्र जो माँ ने लगाया है।


सींझे हुए सालन की सधी खुशबू ये कहे

इसी अंदाज़ से माँ ने नातों को पकाया है।


सितम से पहले सोचना हश्र तु मुद्दई तेरा

माँ की आहें और दुआएँ बड़ी बेमुरव्वत हैं दोनो।


वो मालिक तो रहता नही है जमीं पर लेकिन

माँ-बाप इस धरती पर उसकी नेमत हैं दोनो।



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