कश्तियाँ जलने की
कश्तियाँ जलने की
कश्तियाँ जलने की खबर आ गई
ज़िल्द चेहरों पर थी नज़र आ गई
जिनसे कानों में शीशे हैं पिघले हुए
यह किस मौसिकी की बहर आ गई
फसलें गुल को बेरंग कर दिया
पत्तियाँ जाने कैसी नज़र आ गईं
मन्नतों ने ये क्या रुख कर लिया
बिजलियाँ खुद चलकर घर आ गईं
था जिनका फ़लक मोतियों से भरा
उनके पनहे में कैसे क़हर आ गई
हादसों पर कोई शोर होता नहीं
बस्ती में अहमकाना सहर आ गई
उनके हर राज़ से वाकिफ हैं हम
हमराज़ बनी वक्त की लहर आ गई।
