क्षणिकाएँ : वैशाख-जेठ की
क्षणिकाएँ : वैशाख-जेठ की
हो गयी रात उजेरी, दिन हो गए पलाश।
कर पवन संग मिताई, चला गया मधुमास।।
दरपित रवि से रुठ धरा, घन से करे गुहार।
मुखमण्डल झुलसाएँ, इनका करो सुधार।।
गुलमोहर ने ठान ली, दोपहरी से रार।
गेरुआ घूँघट काढ़े, हो गयी साँझ बहार।।
इठलाय एक बावरा, अमराई गहन गात।
जी ! लो बन चला रसाल, खट्टे करके दाँत।।