मैं जब भी हाथ धोता हूँ
मैं जब भी हाथ धोता हूँ
मैं जब भी हाथ धोता हूँ,
दस्ताने पहन लेता हूँ।
क्या फ़र्क पड़ता है मुझे
मैं नज़रें फेर लेता हूँ।
कूड़ा बाहर पड़ा हो चाहे
मक्खियां मंडराती रहें।
खुले भोजन की थाली मुझे,
डॉक्टर के पास बुलाती रहे,
क्लिनिक पर जब भी जाता हूँ,
जी भर के दवाइयां खा लेता हूँ।
मैं जब भी हाथ धोता हूँ,
दस्ताने पहन लेता हूँ।
पड़ी पन्नियां नाली में,
कीचड़ का जाम लगा रही।
मच्छर की फौज आकर,
हर शाम सता रही।
मलेरिया, डेंगू, दस्त और उल्टी,
घर पर बुला लेता हूँ।
मैं जब भी हाथ धोता हूँ,
दस्ताने पहन लेता हूँ।
