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Shraddha Gaur

Tragedy

3  

Shraddha Gaur

Tragedy

विधि का विधान

विधि का विधान

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उस गीली लकड़ी में इक

परिवार को खाक होते देखा,

धधकता इक मासूम का

घर संसार होते देखा।


भीगी थी पलकें किसी की,

और अधर सूख से गये थे।

करूणा थी हवाओं में भी,


आज किसी के अपने जो छूट गये थे

कफ़न के उस सफेद चादर में जाने

कितनी ही मुस्कान बेरंग सी हो गयी थी,

आज जद्दोजहद किसी की

जिंदगी से खत्म हो गयी।


जलती अग्नि भी न राख

कर पायी उनके ज़ज्बातों को,

जो बिलख रहे थे देख

किसी अपने की जुदायी।


बस पग थे दिखे उस ज्वाला में,

कुछ श्याम से, कुछ राख में सने।

इक हाथ भर की थी चिता वहाँ जलती,

जान पड़ता किसी ने

पूत अपना आज खोया था।


वो उठ न सकेगा अब,

ऐसी नींद में वो सोया था।

क्या गुजरी थी माँ पर उसकी,

क्या रोया पिता उसका होगा।


राखी पर सिसकेगी बहन उसकी,

छोटा भाई आज फिर अकेला सोया होगा।

कहते हैं यहीं राम का नाम है,

दुनिया में यही विधान है।


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