संभल- संभल के
संभल- संभल के
साक्षी है दुनिया सारी
ये प्रेम नहीं करने देती
जिसको इसमें उलझा देखी
उसका यश तुरंत छीन लेती।।
करके गुजरा है स्वयं वही
है जलन उसे फिर भी उसकी
या जान गया फल क्या इसका
रोके है पड़े संतति जिसकी।।
साक्षी है अपयश में यश है
पर प्रेम उचित न इस जग में
पर्वत में आग लगी रहती
पीड़ा बसती है हर नग में।।
मत प्रेम करो तुम छुप छुपकर
विवाह शीघ्र कर लो अच्छा
कुल का यश खण्डित न हो नर
आशीष की यही मात्र दीक्षा।।