पिंजरे में कैद एक पंछी
पिंजरे में कैद एक पंछी
पिंजरे में कैद एक पंछी
आसमान की तरफ देखता
रहता है पर
अपने पंख फैलाकर
आसमान में
हवाओं संग उड़ नहीं सकता
पंख होते हुए भी
उसे महसूस होता है कि
उसके पंख जैसे हमेशा के लिए
किसी जालिम ने काट दिये हैं
उसे अपाहिज सा कर दिया है
वह छटपटाता रहता है
हरदम
यही स्थिति बनी रही तो
उसकी मनोदशा भी
बिगड़ने लगेगी
किसी दिन
किसी ने
उस पर तरस खाकर
उसे उड़ाने के लिए
पिंजरे का ढक्कन खोल भी
दिया तो
वह उड़ नहीं पायेगा
उड़ना जो भूल जायेगा
समय भी तो गुजर चुका होगा
जिंदगी का सुनहरा सूरज
अस्त हो चुका होगा
अब तो वह इतना
कमजोर, निढाल और
दीन हीन होगा कि
बिना सहारे के दो चार कदम भी
न चल पायेगा
जरा भी जोर आजमाइश करी
कहीं भूले से तो
बिना बात मौत जो जल्दी ही
दस्तक देने वाली है
उसके दरवाजे पर
उसके आने से पहले ही
आखिरी सांस छोड़ता बस
पंख होते हुए भी
बिना उड़े
पांव होते हुए भी
बिना चले
घुट घुट कर मर जायेगा।