आज का समाज
आज का समाज
बड़ी अजब दुनिया की रीति।
नहीं बची अब प्रेम की प्रीति।
मतलब का सब प्यार दिखाते,
न जाने कैसी अब चली कुरीति।
न जाने क्यों दिलों में जहर भरा है।
हर शहर गांव में खूनी कहर भरा है।
क्या फिर अब प्रेम की होगी बारिश,
खून से लथपथ हर शहर पड़ा है।
कुछ लोग यहां है नफरत के व्यापारी।
कुछ लोग है मानवता के अत्याचारी।
यहां कुम्हलाये हैं सब सुमन प्रेम के,
लाचार हुई है अब घायल मानवता सारी।
गांठें दुश्मनी की सब बांधे हुए हैं ।
प्रेम की बगिया अपनी उजाडे़ हुए हैं।
क्यों भाता नहीं प्रेम रस आज उनको,
खून के भी अपने रिश्ते बिगाड़े हुए हैं।