एक किस्त जिंदगी की
एक किस्त जिंदगी की
एक किस्त जिंदगी की स्मृतियों में छाई है:
ऐ हवा ये पैगाम मेरे महबूब तक पहुंचा देना
कैसे जी रहा हूं उसके बिना ये उसको बतला देना
नहीं कोई सुकून है ना दिल को करार है
बस उसकी ही चाहत बेशुमार है
वो बन गई गैर तो क्या हुआ
मुझे अब भी उससे प्यार बेशुमार है
मेरी हर प्रार्थना में हर अरदास में
चाहत सिर्फ एक तू ही मेरा प्यार है
एक किस्त जिंदगी की स्मृतियों में छाई है
कब तक रहोगे आखिर यूँ दूर-दूर हमसे,
मिलना तो पड़ेगा एक दिन जरूर हमसे;
दामन बचाने वाले ये बेरुखी है कैसी,
कह दो, अगर हुआ है कोई कसूर हमसे..!!

