तन्हाई......
तन्हाई......
ये तन्हाई भी कितनी स्वार्थी है
किसी को आस पास आने नहीं देती,
पता नहीं उसे, उससे बचने सदा
पुरानी यादें जितने, सब साथ देती।
तड़पाना तो तन्हाई की आदत है
पूनम की रात भी अमावस लगती,
आँखें होते हुए कुछ नहीं दिखता
सिर्फ यादें ही तो सहारा देती।
तन्हाई में अकसर ये होता है
खामोशियां भी कुछ अलग बातें करती,
कुछ समझ आते, कुछ नहीं आते
पर वो बेदर्दी न जाने कितना सताती।
तन्हाई को समय का खेल कहते
वो तो कभी दूर नहीं होती,
उसे कोई समझें या ना समझें
वो तो साया बन के साथ चलती।
जीवन के रास्ते में चलते चलते
जब ये मन कमजोर होने लगता,
यादों को ढूंढते ढूंढते थक जाता
तब ये तन्हाई उसे बहुत सताती।