रात वो चांद मेरा साथ लाई थी
रात वो चांद मेरा साथ लाई थी
फिर उस रात तारों की बारात आई थी ,
रात वो चांद मेरा साथ लाई थी ।
रात ठहरी मेरे द्वार ,
रुठे नैनों में नीर ठहर गई ,
बारात तारों की चांद संग,
द्वार से मेरे गुजर गयी।
रीते मन का द्वार सूना
सूना रह गया आंगन मेरा
रीत निभा रहा द्वार कोई दूजा
नये नातों ने नाता , चांद संग है बांधा ।
हर रस्म पे चांदनी छिटकती जाए
जाने क्यों मेरे तन पे छाले पड़ते जाएं
कैसे इन छालों पर अब हल्दी चंदन लगाए
ओस आस की जो सूखी पड़ती जाए ।
पग पग पड़ रहे है फेरे ,
भंवर डाल रहे मेरे मन में डेरे,
बिन बाशिंदा ही डेरा ये आबाद है,
बर्बादी मेरी यादों के साथ है
हैं साथ निभाने को तन्हाई भी
कि पीड़ा भी छेड़ रही मीठा राग है ।
वहा चांद मेरा साथ किसी और के,
,यहां स्पर्श चांद का, बनके अहसास मेरे साथ है ।