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शालिनी मोहन

Tragedy

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शालिनी मोहन

Tragedy

सरहद एक सीमा

सरहद एक सीमा

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सरहद पार किया

अपनों को ही ताड़ दिया

मिट्टी की सौंधी ख़ुशबू को

लहू से है लाल किया।


जिन्हें आना है, आएँगे

जिन्हें जाना था, चले गये

क्या जाने वाले,

लौट के आ पाएँगे।


ये तेरा, ये मेरा

किसने जाना ये सबका

एक ज़मीन के टूकड़े को

मुल्क़ों में हैै बाँट दिया।


घर सूना, गलियाँ खाली

बस्ती भी है बुझी-बुझी

एक किसी चिनगारी ने

घरों को है जला दिया।


दामन में थे तारे सारे

नीली छतरी के साये में

तारों को भी तोड़

आसमान को वीरान किया।


अब तो ये आलम है

घर बन रहा क़ाफ़िला है

क़ाफ़िले से भीड़ है

और दर्द बड़ा गंभीर है।


एक आहट सुकून की

मोड़ देगी सारे क़ाफ़िले को

आओ क़ाफ़िलों को

घरों में तब्दील करें।


ज़ख्म तो भर जाते हैं

मरहम की मज़बूत पट्टी पर

दर्द कभी मिटता नहीं

समय के चलते पहिये पर।


सरहद तो सारा अपना है

पर हद को किसने समझा है।


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