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Kumar Pranesh

Tragedy

3  

Kumar Pranesh

Tragedy

बादल भी अब मचल रहा !

बादल भी अब मचल रहा !

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हर आहट संदेश यह देता, 

शायद है वो आने को,

चौंकती नजरे खामोश फिर से,

अब क्या खोने और पाने को,

हम सासों की गति सहारे,

खुद को सम्भाले बैठे हैं,

बादल भी अब मचल रहा,

आँखों में छा जाने को ! 


आँखों में शबनम का डेरा,

पर प्यास अधूरी होंठों की,

उस मलहम का क्या भरोसा,

जो खुद पर्याय है चोटों की,

वक्त ने ऐसा खंडित किया,

अब चाह नही जुड़ जाने को,

बादल भी अब मचल रहा,

आँखों में छा जाने को !


मन की वेदना कौन है समझे,

मोल नहीं यहाँ आहों का,

हो सफर अब कैसे पुरा,

मंजिल नहीं उन राहों का,

तुमसे मिलन की आस लिए,

दिल चाहे फ़ना हो जाने को,

बादल भी अब मचल रहा,

आँखों में छा जाने को !


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