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Kumar Pranesh

Romance

4  

Kumar Pranesh

Romance

उसे चाहने को दिल!

उसे चाहने को दिल!

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नज़र मेरी जब उसपे पहली बार पड़ी,

दिल धड़का, सांस रूकी लगी यादों की झड़ी,

जो सुरत ख्वाबों मे न जाने कब से था समाया,

क्या कहूँ कसम से सब कुछ उसमें पाया,

लगा फ़लक से खुद परी उतर आयी है,

चाँदनी तो उसके आगोश मे समाई है,

वो चाँद नही चाँद मे उसका नूर है,

उसे चाहने को दिल कितना मजबूर है!


सादगी ही उसकी मुझे है भाती,

झुका कर नजरे जब वो है शर्माती,

आँखे है ऐसी जैसे कोइ मयखाना,

ओठ उसके है जैसे छलकता पैमाना,

जुल्फों मे उसके सावन की घटा है,

सबसे जुदा उसकी अदा है,

खो गया है चैन बस छाया सुरूर है,

उसे चाहने को दिल कितना मजबूर है!


मुस्कान उसकी सजा देती है महफील,

मिल जाये उसका साथ तो पा लूं मै मंजिल,

कदमो की आहट सागर की मौज लाये,

उसके लिए ले लूं सारी बलायें,

बसा ली जेहन में अब उसकी तस्बीर को,

काश श़फा मिल जाये इस मुन्तज़ीर को,

आई पसंद वो तो मेरा क्या कसूर है,

उसे चाहने को दिल कितना मजबूर है!

 


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