भाता कोई और नहीं
भाता कोई और नहीं
हर रात की एक ही पीड़ा,
तू भी अधुरी मैं भी अधुरा,
एक चिराग पे कब तक भरोसा,
धड़कन दिल संग है अधुरा।
एक सांस जो साथ है अब तक,
उसपे भी कोई जोर नहीं,
अब तो आ भी जाओ प्रिये तुम,
भाता कोई और नहीं !
आशायें सपनों पे भारी,
चाह नही अब राहों में,
आँखें पलक संग द्वन्द है करती,
अविस्मृत दर्द है आहों में,
दिल की गति अब मध्यम पड़ गई,
धड़कन करती शोर नहीं,
अब तो आ भी जाओ प्रिये तुम,
भाता कोई और नहीं !
तुझसे तेरा कुछ न माँगू,
माँगू जो कुछ मेरा है,
पास मेरे कुछ शेष नही अब,
मेरे सांस पे भी तेरा डेरा है,
खुद को खुद में ढुंढ न पाऊँ
दिल का ठिकाना ठौर नही,
अब तो आ भी जाओ प्रिये तुम,
भाता कोई और नहीं !
मन बावरा तुम बिन भटके,
अब दिवा-निशा का बोध नहीं,
कितने जतन है करके देखा,
पर इसका कोई शोध नहीं,
हर मर्ज की तुम हो औषधि,
दूजा उपचार कोई और नहीं,
अब तो आ भी जाओ प्रिये तुम,
भाता कोई और नहीं !
कड़ी से कड़ी जब मिल जाये तो,
बन जाता है हार प्रिये,
हम तुम ऐसे ही जुड़ जाये,
अब होता नही इंतजार प्रिये,
बिखरे मन को जोड़ दे फिर से,
है ऐसा कोई डोर नहीं,
अब तो आ भी जाओ प्रिये तुम,
भाता कोई और नहीं !
मधुमास का मादक बेला,
तेरा साथ जरूरी है,
गोरे तन का श्यामल तन से,
आलिंगन एक जरूरी है,
नेह प्रसार रग रग में कर दे,
है ऐसा कोई पोर नही,
अब तो आ भी जाओ प्रिये तुम,
भाता कोई और नहीं।