उन्ही बचपन की गलियों में!
उन्ही बचपन की गलियों में!
पग पग पे उल्लास जहाँ,
जहाँ मिट्टी कण कण है सोना,
धरती जो मेरी जन्मभूमि है,
जिससे जुड़ा है मेरा होना,
तन से कहीं पर मन से हूँ रहता,
अपने बचपन के गलियों में,
खुद को खुद में ढुंढ़ू तो पाउं,
उन्ही बचपन की गलियों में!
जहाँ सूर्योदय ओज है भरता,
सूर्यास्त जहाँ पीड़ा हर लेता,
जहाँ चाँद की शितलता भी,
मन आन्नद से भर देता,
जहाँ हवा में मिठी खुशबु,
उमंग भरा हर कलियों में,
खुद को खुद में ढुंढू तो पाउं,
उन्ही बचपन की गलियों में!
जहाँ काग़जी नाव बन जाती,
जब जब घटा बरसाता पानी,
जहाँ पतंग संग छुआ आसमां,
डोर बन मन की जब मनमानी,
जहाँ खेल के खिला है बचपन,
मन रमता डन्डे और गुल्लियों में,
खुद को खुद में ढुढूं तो पाउं,
उन्ही बचपन की गलियों में!
जहाँ बड़ो से नेह आशिष,
छोटों से जहाँ सम्मान मिला,
जहाँ गुरू से ज्ञान मिला,
जहाँ मित्रों का मुस्कान मिला,
जी बरबस हर पल यह चाहे,
खो जाउं मित्र-मंडलियों में,
खुद को खुद में ढुढूं तो पाउं,
उन्ही बचपन की गलियों में!
जहाँ गढ़ा हर सपना और,
सपनों को जहाँ मुकाम मिला,
मेरे प्यासी पंखो को,
मुक्कमल एक उड़ान मिला,
गिर गिर कर था जहाँ मै सम्भला,
वही बचपन के गलियों में,
खुद को खुद में ढुंढ़ू तो पाउं,
उन्ही बचपन की गलियों में!
जहाँ निंद भी रिश्वत लेता,
नानी तेरी थपकी कहानी का,
तेरे आँचल में रहता सुरक्षित,
जब मिलता दण्ड शैतानी का,
संजीवनी सा स्पर्श है तेरा,
क्या जादू है तेरी अंगुलियों में,
खुद को खुद में ढुुढूं तो पाउं,
उन्ही बचपन की गलियों में!
एक निवेदन हवाओं से कि,
इतना सा करम बरपा देना,
जब हो जाउं खाक धरा पे,
तु अपना वेग बढ़ा देना,
पहुँचा देना राख को मेरे,
मेरे बचपन की गलियों मे,
मर कर भी हर पल जियूँ मै,
उन्ही बचपन की गलियों में!
