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Kumar Pranesh

Others

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Kumar Pranesh

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मैं इश्क़ में तेरे

मैं इश्क़ में तेरे

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मैं इश्क में तेरे 'गुजरात' हुआ,

एक तू है कि न 'बिहार' हुई,

मैं बन कैदी सा पड़ा रहा,

एक तू है कि न 'तिहाड़' हुई!


मैं कब से बना हूँ काला धन,

एक तू है कि न 'सरकार' हुई,

मैं तेरे लिए 'सबसीडी' हुआ,

एक तू है कि न 'आधार' हुई!


मैं एलबम बना 'तस्वीरों' का,

एक तू है कि न 'प्रोफाइल' हुई,

मैं नॉमिनल की इन्टरी सा पड़ा रहा,

एक तू है कि न 'रिकंसाइल' हुई!


मैं मोती बना तेरी डोरी का,

एक तू है की न 'हार' हुई,

मैं बन सागर तुझे पुकार रहा,

एक तू नदिया की न 'धार' हुई!


मैं कवि बना लिख लिख कर तुम्हें,

एक तू है कि न 'कविता' हुई,

मैं कब से बना हूँ जेठालाल,

एक तू है कि न 'बबीता' हुई!


मैं पल पल में बस ढलता रहा,

एक तू है कि न 'आज' हुई,

मैं ताजमहल बना मोहब्बत का,

एक तू है कि न 'मुमताज' हुई!



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