मैं इश्क़ में तेरे
मैं इश्क़ में तेरे
मैं इश्क में तेरे 'गुजरात' हुआ,
एक तू है कि न 'बिहार' हुई,
मैं बन कैदी सा पड़ा रहा,
एक तू है कि न 'तिहाड़' हुई!
मैं कब से बना हूँ काला धन,
एक तू है कि न 'सरकार' हुई,
मैं तेरे लिए 'सबसीडी' हुआ,
एक तू है कि न 'आधार' हुई!
मैं एलबम बना 'तस्वीरों' का,
एक तू है कि न 'प्रोफाइल' हुई,
मैं नॉमिनल की इन्टरी सा पड़ा रहा,
एक तू है कि न 'रिकंसाइल' हुई!
मैं मोती बना तेरी डोरी का,
एक तू है की न 'हार' हुई,
मैं बन सागर तुझे पुकार रहा,
एक तू नदिया की न 'धार' हुई!
मैं कवि बना लिख लिख कर तुम्हें,
एक तू है कि न 'कविता' हुई,
मैं कब से बना हूँ जेठालाल,
एक तू है कि न 'बबीता' हुई!
मैं पल पल में बस ढलता रहा,
एक तू है कि न 'आज' हुई,
मैं ताजमहल बना मोहब्बत का,
एक तू है कि न 'मुमताज' हुई!
