STORYMIRROR

manisha suman

Tragedy

4  

manisha suman

Tragedy

परछाई हूँ !

परछाई हूँ !

1 min
307

मैं तेरी परछाईं हूँ,

माँ ! फिर भी क्यों पराई हूँ, 

ये रीत जग में,

किसने बनाई है, 


माँ ! सब क्यों कहते,

मैं पराई हूँ 

मैं जानु तेरे मन की पीड़ा, 

छुप छुप रोती रही,


होठों को सीती रही,

हँसती रही झूठी हँसी, 

किस भारी मन से, 

तुने रीत जग की निभाई है, 


माँ ! मैं क्यों पराई हूँ, 

अंश हूँ मैं भी तेरा,

टुकड़ा तेरे जिगर का, 

अंक बिठा कर तूने, 


रक्त पिला कर पाला, 

फिर किस लोक लाज से, 

मुझे दान की वस्तु बना डाला,

आज भी राह तू तकती है, 


मेरी आहट से तू हँसती है,

मुझमें तेरी जान बसती है, 

माँ ! तू खुद को ठगती है, 

जब मुझको पराया कहती है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy