अबोर्शन
अबोर्शन
कभी कन्या लगी पत्थर ,तो यूँ मार दिया ।
जैसे शनि को , जन्मों जन्मांतर उतार दिया।
ये ज़माना अजीब सा है जनाब , खुद जिस
कोख से जन्मे , उसी कोख को जहर दिया।
पता नहीं क्यों , ये किसी वहम का हिस्सा हैं।
समाज का ही नहीं, ये घर घर का किस्सा है।
कन्या को कुशुभ मानने वाले भी दुष्ट ऐसे कि
मां भी किसी कि कन्या थीं ,आज वो फरिश्ता है।
लोगो की मानसिकता , इस कदर गिर चुकी है ।
कन्या के ही कोख , उसी की कन्या गिर चुकी है।
नारी के प्रति अपनी आंखो को , सत्यत्मक से लो
ये नारी आज तुम पर , जीने के लिए घिर चुकी है।
पहले कुशूभ एक दुविधा थी , आज तो अपार है।
सड़को पर , या कचरापत्र में , न्नहों का भंडार है।
जिस्म की जब मोहब्बत ख़तम हो गईं तो फेंक दिया।
वाह इंसान तू इसका , और ये तेरा अजब ही संसार है।