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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

फ़िर भी में पराई हूं

फ़िर भी में पराई हूं

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घर छोड़ दिया है बाबुल का

साजन के सपने सजाये है

जब आ गई अपने सुसराल

लोगों ने कहा ये तो पराई है।


अपना नाम छोड़ा,

पति के साथ नाम जोड़ा

अग्नि के फेरो संग

साथ जीने मरने की कसमें खाई है।


सब जिम्मेदारी को

मैंने ईमानदारी से निभाई है

कभी बेटी बनकर,

कभी पत्नी बनकर 

सब रिश्तों की मैंने चुकाई पाई पाई है

फिर भी लोगों ने कहा ये तो पराई है।


दूध में पानी सी मिल गई हूं

अपने अस्तित्व को भूल गई हूं

पति,सास-ससुर की सेवा में

मर मिट गई हूं

फिर भी लोग कहते है ये तो पराई है

वो भगवान ही जानता है

औरत की नेकी हमेशा ही

इस दुनिया ने भुलाई है।


परिवार के भले के लिये 

जोड़ती रहती हूं पाई पाई है

फिर भी लोग कहते हैं ये तो पराई है

अपने परिवार के लिये

कभी कभी में खुद को ही भूल जाती हूं

आंसूओ से अक्सर फांसी झूल जाती हूं।


फ़िर भी लोग कहते हैं ये तो पराई है

अपने ससुराल में वो अक्सर,

दिये कि बाती सी जलती हूं

फ़िर भी लोग नाम दीपक का लेते हैं।


उजाले में रहकर भी अंधेरे की राई हूं

कैसी जिंदगी है मेरी हे विधाता

सब लुटाकर भी मैं तो पराई हूं।


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