तासीर-ए-मुहब्बत
तासीर-ए-मुहब्बत
मिट्टी में तो हर दम
पाँव संभलते देखे,
संगमरमर पर अक़्सर
पाँव फ़िसलते देखे।
औरों की खुशियों से
जो जलते थे हर पल,
उनके अपने घर भी
हम ने जलते देखे।
हर पल साथ
निभाने का वादा करते थे,
मौसम की तरह वे
रंग बदलते देखे।
अपनी रौशन दुनिया पे
जो इतराते थे,
ऐसे सूरज शाम को
हम ने ढ़लते देखे।
कैसे भी हों
नफ़रतो के ऊँचे पर्वत,
ख़ुलूस और मुहब्बत से
वे पिघलते देखे।
तासीर = असर
ख़ुलूस = सत्यनिष्ठा
