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Kavita Verma

Drama Fantasy

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Kavita Verma

Drama Fantasy

समंदर के किनारे

समंदर के किनारे

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समंदर के किनारे 

एक आदमी को

चलते हुए रेत पर

मिल गयी एक सीपी

उठाया उसे

सहलाया उसे

अपने पास रखने को

साफ करने रेत कण

लहरों में डुबाया उसे

थाम न सका

लहरों के वेग में

छूट गयी हाथ से

गुम हो गयी

विस्तार में

अचकचा कर

देखा अपनी

खाली हथेलियों को

कुछ दूसरी सीपियाँ

उठाते हुए

अपनी को

पहचानने की कोशिश

न पा सका

और चल दिया

अपनी राह

छोड़ कर उसे वही


समंदर के किनारे

एक लड़की,

रेत पर पड़ा एक शंख

आकर्षित हो उस और

देखा संकोच से चहुँ ओर 

हौले से उठाया उसे,

कानों से लगा

सुनी उसकी आवाज़

जो उतर गयी दिल तक

तभी एक लहर ने

खींच ली रेत

पैरों के नीचे से 

छूट गया शंख 

हाथ से 

विलीन हो गया 

अथाह समुन्द्र में 

वह लड़की 

अपनी खाली हथेलियाँ 

देखती रही 

मसलती रही 

पर लहरों के बीच से 

न उठा सकी 

कोई और शंख 


बरसों बाद 

वह आदमी 

चला जा रहा है 

समुंदर की लहरों 

और रेत को

रौंदता 

बिना परवाह किये 

इस बात की

कितनी ही सीपियों 

पर छोड़ चुका है 

वह अपने

क़दमों के निशान


बरसों बाद 

वह लड़की 

जो बन गयी है

औरत

समंदर के किनारे 

लहरों के बीच

रेत पर 

ढूंढ रही है 

उसकी आँखे 

वही शंख 

और

मसलती जा रही है 

अपनी खाली हथेलियाँ 

आज भी। 


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