सीता को मुक्ति
सीता को मुक्ति
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त्रेता में रावण आया था,
धरकर धर्म वेश में,
सीता हर कर ले गया,
आस्थाओं के देश में।
उसके साधु रूप को,
हृदय से करके प्रणाम,
फंस गई सीता जाल में,
तुम तो थे प्रभु राम।
युग बीता द्वापर आया,
रावण, दुर्योधन कहलाया,
भरे दरबार चीरहरण कर,
अपनी जीत पर वह इतराया।
गौरव द्रोपदी का गया,
धूल- धुर्सित हुई तेरी काया
भीष्म भी तुम,
द्रोण भी तुम ,
धृतराष्ट्र तुमने क्यों समाया,
नारी का अपमान हुआ,
यह कैसी तेरी माया।
अब कलयुग का दौर है,
दानव चारों ओर हैं
हर चेहरा है मुखोटे से ढका,
मानवता का अकाल पड़ा।
चौराहे पर खड़ी है आस्था,
विश्वास बेबस और कमजोर है
राम की मूर्ति खंडित है,
रावण महिमामंडित है।
मर्यादा पुरुषोत्तम पर आरोप यहां,
गोविंद है शक के घेरे में,
कब सब्र का सागर छूटेगा,
मौन से पीछा छूटेगा।
चौसर में दाँव लगी द्रोपदी ,
अस्तित्व का बंधन टूटेगा
त्रेता द्वापर के दानव से,
कलयुग में पीछा छूटेगा।
सीता को आगे आकर,
चेहरे से मुखौटा हटाना होगा
राम के भेष में रावण का,
चेहरा सबको दिखलाना होगा।
लक्ष्मण को सीमा बतानी होगी,
रेखाओं के बंधन से
खुद को मुक्ति दिलानी होगी।