सीमा पर
सीमा पर


ना मेंहदी सुखी ना सेज सजी
है सीमा पर रण भेरी जो बजी
ना मुंह मीठा ना राखी है बांधी
सीमा पर आई है रण की आंधी
आँचल भी माँ का वीरान सा है
सीमा पर मचा कोहराम सा है
यारों के संग खेलने का वक्त है
सीमा पर संगीन ताने व्यस्त है
रिश्तों में रहता इंतजार अब है
सीमा पर हमेशां तैयार अब है
है तो दोनों तरफ के ही इंसान
फिर सीमा पर क्यो है घमासान
यह सरहदें फिर किसके लिए है
क्यों वो जान हथेली पर लिए है
रोटियाँ किसने इस पर सेकी है
किसने किसकी लाशें फेंकी है
कौन क्या लेकर आया है यहां
सियासत की ही सरहदें है यहां
गर बन गए सभी यहां इंसान
सीमा का ना रहे कोई निशान
ना मांग किसी की उजड़े अब
गर सियासत की नींद खुले तब
ना सूने आँचल हो ना कलाई
गर सोचे कि आग क्यों लगाई
पर ग़म ही तो है अपने हिस्से
बस राह जाते है उनके किस्से
करता हूँ बस इतनी सी फरियाद
अनाथ ना हो वो दुधमुँही औलाद
रहे हर पल ख़ुशियाँ सीमा पर
मने हर तरह जश्न सीमा पर।