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शिकस्ता हाल में बेड़ा

शिकस्ता हाल में बेड़ा

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शिकस्ता हाल में बेड़ा कि दरिया पार करना है,

मांझी आज तुझको मौज़ से दो दो हाथ करना है।


तवायफ़ की तरह है जिंदगी इस बज़्म में बैठी,

अपने हर हुनर से खुद की अब पहचान करना है।


नशेमन तो उजड़ेंगे इन आँधियों के इशारों से,

फिर कहीं और जाकर जमघट तैयार करना है।


यूँ तो बंदगी घुटने लगी दीवार-ए-उल्फ़त में,

काफ़िर की तरह ही बस ख़ुदा से बात करना है।


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