सौ में से निन्यानवे बेईमान...
सौ में से निन्यानवे बेईमान...
जिसे देखो, वही चोरी किए जा रहा है..
कभी खाद्यान्न में घोटाला,
कभी अपनी 'कुर्सी का रौब'...
कोई सीधेसादे-भोलेभाले लोगों
के साथ विश्वासघात करते
नज़र आता है,
तो कोई मानव-सेवा के नाम पे
अपनी 'जेबें गर्म' कर रहा है...।
हाय, इस 'अंधी नगरी' में
अच्छे-भले दिखनेवाले
लोग भी अक्सर
'बदतर' अभिनय करते
पकड़े जाते हैं...!
क्या यही ईमान की क़ीमत है,
जिसे 'ज़ालिम' लोग
अपनी मनमानी से
अपने 'पैरों तले'
रौंद कर रख देते हैं...?
आखिर कब तक यूँ बेईमान
'लाइलाज बीमारी' बन
इस समाज को दीमक की तरह
चाटकर खत्म करते रहेंगे...??
कब इस नाटक से 'पर्दा उठेगा'
और 'कब' सही फैसला होगा...???
सच मगर 'कड़वा है' --
यहाँ अक्सर हम
'ऊल्लू' बनते हैं...!
और वो सेवा के 'नाम पे'
मेवा खाकर हज़म कर जाते हैं ;
हमें इस बात का
इल्म ही नहीं...!!