साम्राज्य
साम्राज्य
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कहाँ उठता है अब
हाथ कुछ किसी को देने में
हाँ ! कुछ कहीं से मिल जाए
तो तुरंत पहुँचता है जेब तक
न कहीं शर्म
न कहीं पश्चाताप
पैसे की खातिर भूले
सब रीति रिवाज
और कायदे कानून
परोपकार को करके परे
निज को निहाल करके
धीरे-धीरे ही सही
फैला रहे अनवरत
स्वार्थ का साम्राज्य।