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मानसिंह मातासर

Tragedy

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मानसिंह मातासर

Tragedy

कैसी है ये आजादी

कैसी है ये आजादी

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घर वाले तो तरस रहे

गैरों संग प्रेम बरसाए ।

बिन पूछे ही निकले घर से,

देर रात को फिर आए ।

रुपया पैसा रोज फूँकते,

पास बुलाते बर्बादी।

सभ्यता की चिता जलाती,

कैसी है ये आजादी।


खानदान का तो पता नहीं,

नहीं गाँव घर और परिवार।

बात-बात में रिश्ता जोड़े,

भूल जगत का व्यवहार।

अपनों से वो दूर भाग कर,

लुक छिप कर लेते शादी,

जीवन भर पछतावे वाली,

कैसी है ये आजादी।।


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