ख़्वाब
ख़्वाब
भूल जाएं हम अगर
नींद रातों की
बेमौसमी बयार
बातों की
औपचारिकताएं
मुलाकातों की
मंजिल की राह में मिली
पीड़ा मातों की
और परवाह
भरमाते चक्रवातों की,
और कर लें साथ
बहती धाराओं का
जलती शमाओं का
बरसती बरखाओं का
आलोकित आभाओं का
और ठान लें मन में
कुछ करने की
उड़ान भरने की
आसमां छूने की
तो सच में जनाब,
सच होते हैं ख़्वाब ।।
