रेत
रेत
रेत की तरह
वो मेरे हाथों से छूट रहा था
गुज़रे वक्त की तरह
हमारा रिश्ता भी कुछ टूट रहा था
कई दिन बीत जाते
उसकी यादों में
फिर भी वो शिकायत करता
सूनी पड़ी रातों से
ज़रा गौर से देखा तो
मेरे हाथ खाली थे
बाकी थे..
तो बस हमारे रिश्ते के निशान
जानता नहीं था ..
कितनी दूर होगा वो
ढूँढने जाऊँ भी तो कहाँ
जितनी मुझे उसे
पाने की चाहत थी
मुझसे दूर होकर उसे
उतनी ही बड़ी राहत थी
सोचा था,
उस पर सिर्फ मेरा हक है
मगर भूल गया था
उसे भी अपनी ज़िंदगी में
आगे बढ़ने का हक है
कहीं वो आगे बढ़ते बढ़ते
मुझे पीछे छोड़ न दे
इस डर से
मैं कब से टूट रहा था
वो मेरे हाथों से
रेत की तरह छूट रहा था।