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KAVITA YADAV

Drama

3  

KAVITA YADAV

Drama

पति का बटुआ

पति का बटुआ

1 min
213


ना लफ्ज़ों को घुमा कर, ना बातें बनाकर

पति के बटुआ देखा, कहीं छुपा के

खुशी का ना कोई ठिकाना रहा

 मिले जब हमको कुछ नोट वहाँ पे


रोज़- रोज हम करे यही काम,

पति बोले हमको, बस अब करो सिया राम

हँसके हमनें भी कह दिया उनको

अजी छोड़िए अभी तो 

शुरुआत है यहाँ पे


एक दिन जन्मदिन पर दिया हमने 

उनको, इम्पॉर्टेंड वॉच छुपाके

वो भी फिर जमके गुस्सा दिखाके

बोले डार्लिंग तुम इसे लाई कहा से


हमनें भी आँखों में आँसू यूँ लाकर

जोड़े थे आप के बटुमे से बचा के

पति ने कहा फिर पास बुलाके

आखिर खर्च कर दिया ना हमी पे


अरे पगली हमको भी आदत तुम्हारी 

इसलिए कुछ नोट प्यार से छोड देते बटुमे

की तुम खुश हो जाओ क्योंकि

तुम जान हो हमारे,

इस आशा से हम 

खुद करते हैं ऐसी नादानियां यहाँ पे


चंद नोटों को तुम करती हो यू सेव

की कल आ जाये काम हमारे।


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