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पता नही क्यूं

पता नही क्यूं

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उसके हर जख्म

मुझे आज भी याद हैं,

भुल तो जाता

मैं उसे,

मगर भुला नही पाता।

कोशिश तो बहुत कि,

पर नाकाम रहा,

क्योंकि किसी को

भुल जाना ईतना आसान नही होता।

हर मोड पर,

उसकी यादें ,

मेरा पिछा कर रही थी।

कुछ अजीब सा,

लग रहा था

मुझे,

मगर मैं

कह नही पा रहा था।

बात जुबां

तक आती थी,

फिर पता नही

क्या हो जाता था।

मुझे कभी

समझ मे ही नही आया,

उसने

कभी बताया

भी नही,

पता नही क्यूं?

मैं

उसे पसन्द तो था,

शायद

ये भी नही मालूम था।

सब कुछ

अजीब सा

लग रहा था,

मगर आज मुझे

पता चला

कि जिन्दगी जीना

बहुत कुछ जानना,

समझना

ईतना आसान

नही होता

हैं।

दर्द तो दिल में ,

छुपाये

बैंठे

है।


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