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प्रेम

प्रेम

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शब्द,

ढाई आखर से,

सृजीत है,

जिसका संबंध,

एक हृदय से गहरा है।


प्रेम में प्रेमी,

खुद में खुदा,

संसार ढूँढ लेता है।


समाज चाहता है,

कि कोई प्रेमी,

कहीं पर,

पैदा ही ना हो,

वरना,

मेरा तो महत्व ही,

खत्म हो जाएगा।


प्रेम में प्रेमी,

प्रेयसी की आँखों में,

देखते हुए,

दिन-रात, महीने भी,

बिता लेते हैं।


प्रेम पूर्ण है,

इसलिए,

कोई किसी को,

पूर्ण होता,

नहीं देखना चाहता है।


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