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Ayush Jain

Drama

2  

Ayush Jain

Drama

पहचान बनाना बाकी है

पहचान बनाना बाकी है

2 mins
522


भरपूर लड़े,बहुत काम किया, पहचान का बनना बाकी है,

रात गुज़रने वाली है बस सूरज का खिलना बाकी है।


कभी किसी ने गिराया तो किसी ने थपथपाया बहुत,

ये सच है कि जिंदगी ने हर लम्हा मुझे सिखाया बहुत।


लड़ने, झगड़ने और फिर मनाने का दौर तो गुज़र गया,

हाँ मगर वो गुज़रा हुआ पुराना वक़्त याद आया बहुत।


आऊँ और चला जाऊँ, में कोई वक़्त का शागिर्द नहीं,

मैं वो हूँ जो ऊंचाइयों पर ठहरने का गुर्दा रखता हूँ।


रूठा में, मनाया भी मैंने, टूटा में, हँसाया भी मैंने,

ज़िद्दी तो में भी बहुत हूँ पर, बिखरा में, जमाया भी मैंने।


ऐ जिंदगी, संग तेरे खेलने को मचलता हूँ,

तू मुझे फिर गिरा, मैं फिर संभलता हूँ।


चीजों को देखने का नज़रिया बदलना होगा,

गाड़ी नहीं, बस पहिया बदलना होगा।


कहीं धुंधला न जाए वो जो मंज़िल है मेरी,

चलता तो रहूेगा बस गलियाँ बदलनी होगी।


कुछ गलतियों से सीख गए, कुछ हौसलों से जीत गए,

जो अपने थे वो साथ हैं, जो गैर थे वो बीत गए।


आज भी फूलों में महक बाकी है,

आज भी पायल की छनक बाकी है।

आज भी नींदों से मेरी रिश्ता है उनका,

आज भी सीने में धड़क बाकी है।


हर बात का ख्याल उसको, गिरूँ तो संभाल लेता है,

अरे वो तो भगवान है बिन माँगे ही सब कुछ देता है।

हर बात पर उससे भीख माँगना बंद कर दो मेरे दोस्त,

वरना खुदा भी अज़ान को आदत समझ लेता है।


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