मेरी कलम 🖊
मेरी कलम 🖊
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वो सारे सिक्के रखे हैं मेरे ख़ज़ाने में,
जिसे लगे थे तुम अपना बनाने में ।
क्या कहा ? आसमान चीर दोगे,
अरे कई देखे हैं तुम जैसे जमाने में ।
एक दिन वो सब ऊँचाईयाँ छू लेगा,
जिसे लगे हैं आज सारे दबाने में ।
अब तो ये शीशा टूट ही गया,
वक़्त लगेगा टुकड़े उठाने में ।
एक दिन ये सूरत मिट्टी में मिल जाएगी,
वक़्त ज़ाया मत करो इसे सजाने में ।
वो तो अपना था ही नहीं फिर कैसा ग़म,
एक उम्र लगेगी दिल को ये समझाने में ।