नमी और मैं
नमी और मैं
एक हार थी
जिन्दगी मेरी
मुझे ना जाने क्यों
जिन्दगी मिल गई
टूट टूट के बिखरा हूँ
जमी पर मैं
ना जाने क्यो
मुझे नमी मिल गई
शहर को दोष नहीं
देता हूँ मैं
एक जान थी जो
शहर में कहीं खो गई
जीवन का कौन
सा वो मोड़ था
जिसमें मेरी सारी
ख़ुशी ग़म हो गई
ना जमी मिली ना
आसमा मिला
इश्क करके
मुझे एक अनजान
काफिला मिला
