मानव
मानव


बस का इंतजार हो रहा था
बस है कि आ ही नहीं रही थी
बहुत वक्त बीत चुका था
और फिर गाँव के किनारे रोड़ पर
खड़े हो कर बस का इंतजार करना
याद आ रहा था
लोगो का कंधे पर अंगोछा डाले
एक दूसरे से बाते करना
फिर मुझ पर नजर पड़े तो
पुछना किसके यहाँ आए हो
उन से बात चीत में वक्त का
पता ही नहीं चलना
फिर बस आती दिखाई दी
मैंने कानों में गिटक डाली और
बस में बैठ गया
एक अकेले सफर के लिए।