नियति के मोड़ सेवा को समर्पित
नियति के मोड़ सेवा को समर्पित
नियति के मोड़ सेवा का पथ
नियति के मोड़ों की क्या बात करें...
क्योंकि हम भी तो उन्हीं राहों से गुज़रे हैं।
कभी लगता है कि सब कुछ हमारे हाथ में है —
हम सोचते हैं, योजनाएं बनाते हैं,
मगर नियति कुछ और ही लिख देती है।
एक मोड़ – और पूरी दिशा बदल गई...
पंद्रह मिनट पहले तक मैं सोच रही थी
M.Sc. केमिस्ट्री करनी है,
आगे चलकर बायोकेमेस्ट्री में रिसर्च करना है।
मगर तभी एक मोड़ आया —
पंद्रह मिनट बाद ही शादी का बुलावा आ गया।
पंद्रह दिन में विवाह,
और मैं अपने ससुराल पहुँच गई।
M.Sc. अधूरी रह गई..
.
पर नई भूमिका ने जन्म लिया
मैं एक बेटी से बहू, पत्नी, चाची, ताई बन गई।
जब लौटे तो रिज़ल्ट हाथ में था,
पर जीवन अब किसी और पथ पर था।
इस मोड़ को मैं सुखद मोड़ कहूँगी —
क्योंकि इसके बाद मैंने पैरामेडिकल की पढ़ाई की,
और अपने सपनों को नई उड़ान दी।
जब ज़िंदगी हिल गई — कच्छ का भूकंप
हम सब 26 जनवरी के झंडारोहण की तैयारी में थे।
मगर नियति को कुछ और ही मंज़ूर था।
26 जनवरी 2001 को एक भीषण भूकंप आया,
जिसने कच्छ और अंजार को हिला कर रख दिया।
हज़ारों लोग बेघर हो गए, कई अनाथ हो गए।
मेरे पति डॉ. योगेन्द्र जैन,
उस समय भी अपनी मेडिकल टीम के साथ
कच्छ पहुँचे और घायल व पीड़ितों की सेवा में लग गए।
उनकी सेवा भावना,
उनका समर्पण,
आज भी मेरी आँखों में बसी हुई है।
फिर आया एक और इम्तिहान — कोरोना का काल
15 मार्च 2019 को
बच्चों के आग्रह पर हमने अपना क्लिनिक अस्थायी रूप से बंद किया।
और कुछ ही दिनों में —
20 मार्च 2019 से संपूर्ण लॉकडाउन लागू हो गया।
सड़कों पर सन्नाटा,
बाज़ार सुनसान,
घरों में बंद ज़िंदगियाँ।
अस्पतालों में भीड़ और डर।
मौत की ख़बरें हर ओर।
परंतु...
इस संकट में भी मेरे पति डॉ. योगेन्द्र जैन ने हार नहीं मानी।
उन्होंने ऑनलाइन माध्यम से हज़ारों कोरोना मरीज़ों का इलाज किया।
उनकी टीम लगातार 24x7 सेवा में तत्पर रही।
हर कॉल, हर रिपोर्ट, हर तकलीफ का उत्तर —
उन्होंने पूरी निष्ठा से दिया।
आज भी वे सेवा में जुटे हैं —
हर मोड़ पर, हर महामारी में —
जैसे संकटों के बीच एक आशा की किरण।
मोड़ कठिन थे — लेकिन रुकना नहीं सीखा
इन वर्षों में कई मोड़ आए,
कभी नीम जैसे कड़वे,
तो कभी शहद जैसे मधुर।
पर एक बात हमेशा सीखी —
जो पुरुषार्थ करता है,
वो इन मोड़ों को पार कर
नियति को भी एक नई दिशा दे देता है।
यही तो है — नियति और पुरुषार्थ का संगम
नियति के ये मोड़
हमें तोड़ते नहीं,
बल्कि गढ़ते हैं।
अगर हमारे पास संघर्ष करने की शक्ति,
और सेवा का भाव हो —
तो ये मोड़ भी
मील का पत्थर बन जाते हैं।
लेखिका विमला जैन
स्वरचित अनुभवों पर आधारित
डॉ. योगेन्द्र जैन की जीवन यात्रा और सेवा को समर्पित
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