☕ वो दो चायें — एक दिखावे वाली, एक महंगी वाली!
☕ वो दो चायें — एक दिखावे वाली, एक महंगी वाली!
☕ वो दो चायें — एक दिखावे वाली, एक महंगी वाली!
✍️ विमला
कभी-कभी ज़िंदगी हमें छोटी-छोटी बातों में बड़ी सीख दे जाती है —
जैसे एक कप चाय से!
एक बार किसी सगाई में “अमीरों की चाय” देखी —
जहाँ स्वाद की जगह दिखावा था।
और दूसरी बार दूर वेनिस में,
एक साधारण कुर्सी पर बैठने की कीमत चाय से भी ज़्यादा चुकाई!
दोनों ही जगह, चाय तो बहाना थी,
असल में सिखाया उसने सादगी, सच्चाई और मुस्कुराकर जीने का अर्थ। ☕💫
🍵 पहला मंजर – दिखावे वाली चाय
बात पुरानी है...
एक सगाई में जाना हुआ —
जहाँ चांदनी से ज़्यादा चमक लोगों के कपड़ों में थी,
और मिठास से ज़्यादा मिठाई के नामों में! 😄
अब बारी आई चाय की!
हमने सोचा, थोड़ा सुकून मिलेगा।
पर सामने आई — केसर वाली चाय!
पानी नदारद, बस दूध, केसर और शान का तामझाम।
एक घूंट लिया, मन बोला —
“यह चाय नहीं, दिखावे का घूंट है!”
हमने कहा — “भाई, हमें तो सीधी-सादी चाय चाहिए।”
वो बोले — “हम अमीर लोग ऐसी ही चाय पीते हैं!”
हम मुस्कुरा दिए —
सोचा, अमीरी तो है,
पर स्वाद और सादगी की गरीबी साफ झलकती है।
बस, उसी दिन ठान लिया —
अब किसी समारोह में चाय का काम नहीं लूंगी!
घर पर तो एक “अपनी पसंद की चाय” कॉर्नर रख लिया,
जहाँ हर मेहमान अपनी पसंद से चाय बना सके।
सब खुश, सब संतुष्ट! 😊
🌍 दूसरा मंजर – महंगी वाली चाय (वेनिस में)
अब सुनिए दूसरा किस्सा —
वेनिस!
दिनभर घूमते-घूमते थकान से चूर हो गई थी।
बाहर एक खाली कुर्सी दिखी,
सोचा — थोड़ा बैठ लूं, दम ले लूं।
बैठते ही वेटर आया —
“मैडम, टी?”
हमने मुस्कराकर कहा — “हाँ, हाँ, एक कप दे दो।”
कुछ देर बाद आया —
कप में गर्म पानी, साथ में एक टी-बैग,
और बिल — आठ यूरो! 😳
हम दंग रह गए —
यह चाय है या सोने की खान?
वो बोला — “मैडम, वो कुर्सी हमारी थी…”
मतलब, चाय की नहीं, कुर्सी की कीमत थी! 😂
बस, फिर क्या था —
हँसते-हँसते चाय पी और सोचा —
एक ने दिखावे की कीमत सिखाई,
दूसरी ने कुर्सी की कीमत
💭 समापन विचार
ज़िंदगी की चाय में शक्कर तो सब डालते हैं,
पर असली स्वाद तब आता है —
जब उसमें बनावट नहीं, सादगी घुली हो।
कभी टपरी की चाय सुकून दे जाती है,
और कभी महंगी चाय बस एक सीख छोड़ जाती है —
कि कीमत नहीं, दिल से बनी चीज़ ही अमूल्य होती है। ☕💖
