सपनों की बरसात टीवी विचार और सपनों का मेल
सपनों की बरसात टीवी विचार और सपनों का मेल
परिचय
कभी सोचा है कि हमारे सपनों में अचानक इतनी बरसात क्यों होने लगती है?
दिनभर देखी गईं सीरियल, फिल्में, हमारे विचार और महसूस किए गए पल—सब रात में एक रंगीन बारिश बनकर उतरते हैं। कभी डर की, कभी खुशी की, कभी हँसी की, और कभी उन कल्पनाओं की, जिन्हें हम बस यूँ ही देख लेते हैं।
इसी सपनों की अनोखी बरसात पर एक हल्का-फुल्का, दिल से लिखा अनुभव…
सपनों की बरसात
: टीवी, विचार और कल्पना का मेल
सपनों की बरसात की तो क्या बात करें,
सपनों में बरसात तो चलती ही रहती है।
सपनों की बरसात कभी-कभी बहुत भारी होती है।
जब एक दिन में बहुत सारी सीरियल देख ली हों—
उसमें भूत वाली भी हो—
तो सपनों में भूत ही नज़र आते हैं।
झगड़े वाली देख ली हो,
तो सपनों में झगड़ा ही दिखता है।
कभी-कभी ऐसा ही होता है—
जब हम एक साथ पाँच तरह की सीरियल देख लेते हैं,
तो घर-परिवार के सपनों की जगह,
अपनी ज़िंदगी के सपनों की जगह,
टीवी वाले सपनों की बरसात होने लगती है।
कभी-कभी पिक्चर की बरसात भी होने लगती है।
बरसात का क्या है…
सपनों की बरसात तो होती ही रहती है।
आपका क्या कहना है?
कभी डर, कभी ख़ुशी, कभी हँसी,
कभी हमारे विचार,
और कभी वह सब जो हमने दिन में देखा होता है—
कभी जो हमारे साथ घटित होता है—
वह सब सपनों में चलता रहता है।
और यह सपनों की बरसात चलती ही रहती है।
सुबह उठकर अधिकांश सपने याद भी नहीं रहते;
कुछ ख़ास सपने हों, तो बस वही याद आते हैं,
बाकी सब नींद के अंधेरों में गुम हो जाते हैं।
यही कारण है कि हमने बहुत सारी सीरियल देखना ही बंद कर दिया,
क्योंकि वे दिमाग पर हावी रहती हैं
और रात को सपना बनकर बरसती हैं।
हमारे साथ तो ऐसा ही होता है…
आपके साथ क्या होता है?
ज़रा अपनी समीक्षा देकर बताइए,
अपने अनुभव सुनाइए—
सपनों की इस बरसात पर।
स्वरचित वैचारिक कविता -
