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Sadhna Mishra

Crime Inspirational

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Sadhna Mishra

Crime Inspirational

नारी मूर्ति नहीं इंसान है

नारी मूर्ति नहीं इंसान है

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छोटी सी बात जो बड़ी हो गई

मौत बनकर मेरी है खड़ी हो गई।


दौलत के तराजू में तौली गयी

बेजान वस्तु मैं समझी गई।


दुल्हन की तरह है सजाया गया

सोलह सिंगार पूरा कराया गया।


अर्थी पर आज मैं थी विदा हो रही

पर न मानो कि सबसे जुदा हो रही।


कल आई थी आंचल मां का छोड़कर

लाल सिंदूर लाली चुनर ओढ़ कर।


अरमानों की डोली पर थी चढ़ी

सप्तपदी में पिया से थी आगे चली।


दहेज के लोभ में हूं सताई गई

कागज की तरह हूं जलाई गई।


रोज तिल तिल के मरती रही राहतें

आज मर कर मिली है मुझे शोहरतें।


छोटी सी बात जो बड़ी हो गई

मौत बनकर मेरी है खड़ी हो गई।।



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